जय गुरूजी
गुरूजी के सत्संग में ऐसा क्या खास है जो वहां बैठते ही हमारा कल्याण होने लगता है ..ये खास वज़ह है ..हर सत्संग में गुरूजी का मौजूद होना ..हमें कोई दर्शन हो या न हो ..जिससे हम ये सुनिश्चित करें कि गुरूजी यहाँ हैं या नहीं ...गुरूजी वहां होते ही हैं ..
आजतक बड़े सारे पूजा हवन के बारे में सुना, देखा... कई बार भगवान की मौजूदगी जैसा महसूस भी किया पर पक्के तौर पर कुछ नहीं कह पाते ..कि हमारी पूजा अर्चना स्वीकार हुई की नहीं ..ईश्वर यहाँ आये थे या नहीं ..पर गुरूजी के सत्संग में ईश्वर कई बार पहले ही पहुँच जाते हैं ..गुरूजी का स्वागत करने ...
जो गुरूजी को नहीं मानते या ठीक तरह से नहीं जान पाए हैं ..उन्हें ये सुनना भी अच्छा नहीं लगेगा ..पर ये सच है ..गुरूजी जहाँ भी जाते हैं ..उनका स्वागत करने वहां के देवता ,पितर ,साधू, सन्यासी, ऋषि , मुनि सभी आ जाते हैं ..हम इंसान के अलावा पारलोकिक जीव भी रहते हैं कि किसी भी तरह उन्हें गुरूजी के सत्संग में रहने का मौका मिल जाए ..
अब जहाँ ऐसा पवित्र वातावरण होगा जहाँ सारे ईश्वर मौजूद होंगे वहां जाकर कोई खाली हाथ कैसे आएगा ..जिसके लिए जो सही है वो उसे देकर ही सत्संग से सभी विदा होते हैं .. इतने आशीर्वाद इतनी कृपा सिर्फ और सिर्फ गुरूजी के सत्संग में ही हमने पाया है ..हर सत्संग से हम कुछ जोड़ पा रहे हैं ..वो दिखे या न दिखे ..पर बड़ी अच्छी कमाई कर के ही हम सत्संग से निकलते हैं ..अब इस कमाई को जमा करके अपने में रख पाना या गवां देना ये हमारे ऊपर निर्भर करता है ..देने वालें ने तो देने में कोई भेदभाव नहीं किए ..सबको मिलता है बराबर ..हमने कितना लिया ये हमपर है ..
हम इंसान ही अभी तक पेशोपेश में हैं ..कि कौन हैं ये गुरूजी ? पर बाकि जीवों को बड़े अच्छे से पता है कि उनका तारणहार ही गुरूजी के रूप में आये हैं .. वही महाशिव हैं जो सदियों से जीवों पर अपनी दया बरसाते आये हैं ..जब भी संसार में पाप और पूण्य का संतुलन बिगड़ा ..किसी न किसी रूप में धरती पर आकर इसे संभाल लिया है ..
आज घोर कलयुग में हमारे सारे रास्ते बंद हैं ..जिनके द्वारा हम वो कर्म कमा पाते जिससे हमारी मुक्ति होती ..और जो रास्ते हैं वो इतने लम्बे की जन्म दर जन्म हम उस पर चलते जाते हैं पर कहीं पहुँच ही नही पाते ..रास्ते में जितना कमाना था उसे ज्यादा गवां कर फिर उसी स्तिथि में आ जाते हैं ..यानि गोल गोल घुमे जा रहे हैं ..
गुरूजी ने हमने शॉर्टकट बताया है ..हम अपना विश्वाश ही नहीं बना पाते हैं कि कोई इतने आसानी से सबकुछ पा सकता है ..हम गुरूजी की बातें मान कर तो देखें ..अपने को छोड़ कर तो देखें एक बार ..गुरूजी के हाथों में ..तभी तो जान पायेंगे ..की इस शोर्ट कट से गुरूजी कितनी आसानी से हमें मंजिल तक पहुँचाना चाह रहे हैं ..
इन सत्संग और लंगर और सेवा के जरिये गुरूजी हममें शुद्धता भर रहे हैं ...हम अंदर से जैसे जैसे साफ़ होते जायेंगे ..हमरे कर्म भी जलाते जा रहे हैं अपने तेज़ से ..जिन्हें कभी कभी हम विज़न या ड्रीम या किसी और तरीके से जान पाते हैं ..बहुतों संगत को तो पता ही नहीं कि गुरूजी किस तरह से उनका काम कर रहे हैं ..
जब हम विज़न पर विश्वास करेंगे तभी तो हमें समझ आएगा कि विज़न के द्वारा भी गुरूजी हमारी मुसीबत दूर करते हैं ..जो गुरूजी के तरीके पर विश्वास नहीं करता उन्हें गुरूजी छोड़ देते हैं .. जाओ अपना कष्ट भुगत कर आओ ..फिर आना तो है गुरूजी के पास ही... तब जाकर उसका कल्याण शुरू करेंगे ..
गुरूजी तो सबका कल्याण करने आये हैं ..चाहे वो माँ दुर्गा का भक्त हो चाहे शिव भक्त ..सभी रस्ते हमें यहीं लेकर आने वाले हैं ,महाशिव के इस दर पर .....हम दिमाग वाले हैं तो गुरूजी का तरीका नहीं मानते ..तो हमें वो सब कुछ भुगतना ही पड़ेगा ..जो सदियों से चलता आ रहा है ..हमारे कर्म का लिखा .
संगत हैं पर गुरूजी के बातों को भी 100 % सच नहीं मानते ..हममें से सभी संगत को एक बात बहुत अच्छे से पता है कि गुरूजी बहुत कम बोला करते सत्संग में ..और जिनके साथ उनकी बातें होती रहीं ..वो भी वही बातें थीं जो गुरूजी उनको बताना चाहते ..यानि कोई भी संगत की कभी हिम्मत नहीं हुई कि गुरूजी से सवाल करें ..आज जो भी हम सुनते हैं कि गुरूजी के बोल हैं या गुरूजी ने कहा है .....सभी किसी न किसी के पर्सनल अनुभव ही हैं ....प्रवचन तो गुरूजी ने कभी दिया ही नहीं ..
फिर आज हम संगत कैसे भेद भाव करके अपने को ही भ्रमित कर रखे हैं ..जैसे हम कहते हैं ..वो अंकल गुरूजी के साथ 20 साल से हैं ..वो जो कह रहे हैं .. समझ लो गुरूजी ही कह रहे हैं ..ये सही है कि कोई भी संगत सत्संग में अपने मर्जी से नहीं बोलता ..गुरूजी की मर्जी से ही बोल निकलते हैं ..पर गुरूजी के साथ बिताये समय के अवधि से इन सत्संग का कोई सीधा लिंक नहीं है ...
इन 20 सालों में उसकी यात्रा गुरूजी के साथ कैसी रही ..? ....हो सकता है कि वो गुरूजी से गुरूजी के समाधी के बाद ही असली तरीके से जुड़ पाया हो..क्यूंकि पहले तो संगत गुरूजी को बस एक महापुरुष के रूप में ही देखा करती रही ..हो सकता है कि उन संगत ने पिछले कुछ समय में वो सब पा लिया हो जो गुरूजी के साथ रहते भी समझ नहीं पाया था ..
ऐसे ही समाधि के बाद जुडी कोई संगत अपने भाव में इतनी पक्की हो कि तुरंत गुरूजी के करीब आ पाए हों ..कुछ भी संभव है ..पर हम संगत को इन सब में भेद भाव करना ही क्यूँ ..बस गुरूजी को कह दें कि जो भी मेसेज हम तक आएगा हम समझेंगे की आपने ही भेजा है ..और उसे मानकर ही हम आपको पा सकते हैं .. बस इतना करने से ही हमारा काम हो गया समझें ..
गुरूजी हमतक कोई भी ऐसा मेसेज नहीं पहुँचने देंगे जो हमें नहीं मानना है क्यूंकि उन्हें भक्त की सरलता पसंद है... उन्हें भक्त के सच्चे भाव पसंद है ..उन्हें भक्त का उनके ऊपर विश्वाश की लाज रखनी है ....वो ऐसे भक्तों को कभी भी नहीं छोड़ते ....हर पल उनका मार्गदर्शन करने किसी न किसी रूप में होते हैं ..
सारा खेल विश्वास का है ..हम यदि किसी संगत पर विश्वास कर रहे हैं तो उसमें अपने गुरु का अंश देख कर या जानकर कि गुरूजी हर संगत में वास करते हैं ..यानि एक तरह से हम यहाँ भी अपने गुरु पर ही भरोसा कर रहे हैं .. किसी मानव पर नहीं ..फिर परेशानी कहाँ है ..?
क्यूँ भटक रहे हैं आज भी हम ..क्यूँ नहीं मानते एक अंधे की तरह से... वो हर बात जो गुरूजी का मेसेज के रूप में हम तक पहुँचती है ..कितने ही तो माध्यम दे रखा है गुरूजी ने अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए .. हमारा अपन डायरेक्ट कनेक्शन भी तो है गुरूजी के साथ ..फिर भी हम क्यूँ नहीं सुधर पा रहे हैं ..
सत्संग में जाते हैं सेवा सिमरन भी करते हैं ..लंगर भी खाते हैं ..फिर कमी कहाँ रह रही है ..? कमी है हमारे भाव में ..ये सभी काम जो हम करते हैं .. किसी न किसी मनोरथ पुरे होने की उम्मीद में और यहीं हम चुक रहे हैं ..यदि कोई आर्थिक तकलीफ झेल रहा है तो वो साथ साथ गिनता भी जा रहा है कि इतने दिन हो गए ..इतने बार लंगर खा लिया ...सेवा भी मिली हुई है ..फिर भी कुछ नहीं बदला ..
नहीं बदलेगा कुछ ..जबतक हम अपने को ऐसे विचार से मुक्त करके इन सभी कामों को नहीं करते ..हम कुछ खास कमा ही नहीं पा रहे हैं ..कम से कम हमारी ब्लेस्सिंग्स इतनी तो जमा हो जाए कि हमारे द्वारा संचित पूर्व कर्मों को खत्म कर दे ..तभी तो हमारे जिन्दगी में नयी शुरुआत होगी .. हम सब कुछ करते हैं पर भाव ही शुद्ध नहीं है .. यहाँ भी ईश्वर से भी व्यापार ..हम इतने बार आये ..अब क्यूँ नही दोगे ?....किसी को तो एक बार आने से ही सबकुछ दे दिया ..हमें क्यूँ नहीं ..?
जिसे मिला उसका भाव सच्चा रहा होगा ..हम मानव को एक दुसरे को धोखा देने की ऐसी आदत पड़ गयी है कि हम ईश्वर को भी धोखा देने चल देते हैं ..जो अन्तर्यामी हैं ..उन्हें क्या पता नहीं होगा कि हम क्या लेकर आये हैं उनके पास ..
गुरूजी कर्म कटवाने आये हैं ..कर्म कटवा कर ही सबकुछ देंगे ..अब ये हम संगत पर है कि हम यहाँ टिके रहें या अपने पुराने रस्ते पर फिर से वापस मुड जाएँ ..
एक बात और भी है कि आज वापस चले भी गए तो भी सबकुछ भुगत कर आना तो इन्ही के शरण में है ..गुरूजी के लिए हर जीव का कल्याण ही गुरूजी की जीवों के प्रति ब्लेस्सिंग्स है....हम ये ब्लेस्सिंग्स न गवाएं ..बस जुड़े रहें
जय गुरूजी
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